जानिए क्यों और कैसे रखते हैं करवा चौथ का व्रत

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यह तो हम सभी को पता है कि पति की लंबी आयु के लिए पत्नियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। यह त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन महिलाएं सुबह-सुबह उठकर पूजन करती हैं और निर्जला व्रत रखती हैं। शाम होने का इंतजार करती हैं और शाम को सोलह श्रृंगार कर चंद्रमा को अर्ध्य दे कर छलनी से अपने पति को देखती है। इन सब रस्मों के बाद पति अपने हाथों से पानी पिलाकर पत्नियों का व्रत खोलते है। क्या आप जानते है सदियों से रखे जा रहे इस व्रत को रखने का क्या कारण है? आज हम आपको बताएँगे कि इस व्रत के पीछे कहानी क्या है।

माना जाता है कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या के लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से मिलकर अपना दुख बताया और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा। श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवाचौथ व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सकी थी।

करवा चौथ पर्व की पूजन सामग्री

कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए पैसे।

करवा चौथ पूजन विधि

  • व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।
  • व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
  • प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’
  • घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावलों को पीसे। फिर इस घोल से करवा चित्रित करें। इस रीती को करवा धरना कहा जाता है।
  • शाम के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए।
  • माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।
  • भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें।
  • सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें।
  • सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।
  • पति, सास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।