व्यवस्था ऐसी हो कि कोई भी न करा सके बाल मजदूरी: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी व्यवस्था का विकास करने की बात कही है जहां कोई ठेकेदार बाल श्रमिकों को काम पर न रख सके। इस नियम को संविदात्मक एंगेजमेंट का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से लॉकडाउन के दौरान बाल तस्करी मामलों की संख्या में अचानक वृद्धि के संबंध में जवाब मांगा है।

पीठ ने सुझाव देते हुए कहा कि ठेकेदारों को पंजीकृत होना चाहिए और उनके कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाना चाहिए कि किसी बच्चे को काम पर नहीं रखा जाए।, “केवल पुलिसिंग से काम नहीं चलेगा। हम उन्हें बाजार मुहैया कराते हैं, क्योंकि बाल श्रम सस्ता है। हमें ठेकेदारों के साथ शुरुआत करनी होगी।” अदालत ने नोटिस जारी किया और मामले को दो सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए तय किया।

शीर्ष अदालत की यह प्रतिक्रिया नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा दायर जनहित याचिका पर आई है।

एनजीओ की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील एच.एस. फूलका ने कहा कि शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि सरकार को उन ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट करना चाहिए जो बाल श्रमिकों को काम पर रखते पाए जाते हैं। शीर्ष अदालत ने फूलका से उन तरीकों का पता लगाने के लिए कहा, जिससे बच्चों का शोषण न हो और इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जाएं। अदालत ने कहा, “हम चाहते हैं कि आप इस पर कुछ होमवर्क करें।”