Hartalika Teej 2022: कल है हरतालिका तीज, जाने शुभ मुहूर्त, पूजनविधि और कथा

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प्रत्येक वर्ष हरतालिका तीज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला और निराहार व्रत रखकर पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं वहीं कुंवारी कन्याएं भी मनचाहा वर पाने के लिए इस दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना कर निर्जला व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में….

पूजन का शुभ मुहूर्त

हरतालिका तीज सुबह का मुहूर्त 05:57 मिनट से 08:31 मिनट तक
अवधि- 2 घंटे 33 मिनट

पूजन विधि

पति-पत्नी के अटूट बंधन के इस पर्व पर महिलाऐं शुद्ध मिट्टी से शिव-पार्वती और श्री गणेश की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा करती हैं।
पूजन में रोली,चावल,पुष्प,बेलपत्र,नारियल ,दूर्वा,मिठाई आदि से भगवान का भक्ति भाव से पूजन करें।
तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरितालिका तीज व्रत की कथा सुनें या पढ़ें।
आरती करें उसके बाद भगवान का आशीर्वाद लेकर सभी को प्रसाद दे दें।
इस व्रत को निर्जला रहकर किया जाता है और रात में भगवान शिव और माता पार्वती का कीर्तन किया जाता है।

व्रत कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती अपने कई जन्मों से भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या की थी। माता पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का भी सेवन नही किया था। वह सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही तप किया करती थी। माता पार्वती को इस अवस्था में देखकर उनके माता पिता बहुत दुखी रहते थे। एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह के लिए प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए। पार्वती जी के पिता ने तुरंत ही इस प्रस्ताव के लिए हां कर दी। जब माता पार्वती को उनके पिता ने उनके विवाह के बारे में बताया तो वह काफी दुखी हो गई। उनकी एक सखी से माता पार्वती का यह दुख देखा नहीं गया और उन्होंने उनकी माता से इस विषय में पूछा। जिस पर उनकी माता ने उस सखी को बताया कि पार्वती जी शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही हैं। लेकिन उनके पिता चाहते की पार्वती का विवाह विष्णु जी से हो जाए। इस पर उनकी उस सहेली ने माता पार्वती को वन में जाने कि सलाह दी। जिसके बाद माता पार्वती ने ऐसा ही किया और वो एक गुफा में जाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गई थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का बनाया और शिव जी की स्तुति करने लगी। इतनी कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया।